Monday, December 13, 2021

आंखों पर चश्मा


एक छोटे बच्चे की आंखों पर चश्मा देख कर हम पूछ बैठे -

भाई इस उम्र में चश्मा कैसे ?
वह बोला - सर दूर का है। हमने मतलब पूछा तो बोला सर इसके ना लगाने से दूर के लोग हमें ठीक प्रकार से देख नहीं पाते। मैंने कहा भाई यह चश्मा उनकी आंखों पर नहीं तुम्हारी आंखों पर है, ठीक से देखना और ना देखना तुम्हारे लिए है। वह तो जैसा देख सकते हैं वैसा ही देखेंगे। फिर तुमने चश्मा लगा रखा है अथवा नहीं इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता।
यहां तक तो मुझे लगा कि मैं समझदार और बच्चा मूर्ख है। किन्तु आगे के उसके वाक्य ने जैसे हम दोनों की भूमिका ही बदल दी। वह बोला - सर यही तो मैं समझाने का प्रयास कर रहा था अपने माता पिता को कि लोगों की नजर में हम ठीक दिख सकें इसके लिए हमें किसी प्रकार का चश्मा पहनने की आवश्यकता नहीं है। यह तो अपनी ही दृष्टि ठीक करने के लिए है। जब मैंने इसका अर्थ पूछा तो वह बोला - सर जिसे देखो चश्मा लगाए हुए बैठा है -
- किसी ने यह सोचकर अमीरी का चश्मा लगा रखा है कि लोग उसे अमीर समझे
- कोई बहादुरी के चश्मे के भीतर मानसिक तनाव और भय को छुपाए बैठा है
- कोई नैतिकता के चश्मे से अनैतिकता छुपाने को प्रयासरत है
- वह जो अज्ञानी है उसे कोई मूर्ख ना कह दे इसलिए उसने ज्ञान का चश्मा पहन रखा है।
मुझे तो इतना ही समझ आया सर कि यह सभी दिखावे के चश्मे हैं, इनके भीतर की वास्तविकता एक न एक दिन तो प्रकट होगी ही।
जिस दिन यह दोहरी वास्तविकता सामने आएगी उस दिन जो अपने हैं उनकी पीठ दिखाई देगी और जिनके चेहरे दिखाई दे रहे होंगे अपने नहीं होंगे।

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