Friday, April 17, 2020

शिक्षण एवं प्रशिक्षण

"ऑनलाइन केवल प्रशिक्षण हो सकता है शिक्षण नहीं, और बहुत छोटे बच्चों के लिए प्रशिक्षण का आपातकाल नहीं होता|"
फेसबुक पर लिखी गयी इस पंक्ति को पढ़कर कई लोगों ने पहली बार प्रशिक्षण और शिक्षण में अंतर जानने का प्रयास किया| कुछ के लिए तो दोनों लगभग एक जैसे ही होते हैं, दुःख की बात तो ये है कि इन "कुछ" में से कुछ शिक्षण संस्थानों की कुर्सियों को शोभित कर रहे हैं|
साधारण शब्दों में,
प्रशिक्षण (Training) - बाहर से भीतर जाने की प्रक्रिया है, वहीं 
शिक्षण (Teaching) - भीतर से बाहर आने की प्रक्रिया है|
दूसरे शब्दों में,
प्रशिक्षण देने की प्रक्रिया हो सकती है, शिक्षण तो ग्रहण करने की प्रक्रिया है|
समझने की बात ये है कि देने की प्रक्रिया (प्रशिक्षण) में देने वाले की ही भूमिका होती है, ग्रहण करने वाले का या तो  नगण्य अथवा न के बराबर| जबकि ग्रहण करने की प्रक्रिया (शिक्षण) में ग्रहण करने वाले की भूमिका महत्त्व की है, देने वाला (शिक्षक) सबको एक तराजू में नहीं टोल सकता|
एक और महत्वपूर्ण अंतर यह है कि प्रशिक्षण - कौशल विकास की प्रक्रिया है जबकि शिक्षण - व्यक्तित्व विकास की| व्यक्तित्व का विकास बिना सामने बैठाये कैसे संभव है|
इसीलिये शिक्षण का ऑनलाइन होना संभव नहीं|
चूंकि छोटे बच्चों के लिए कौशल विकास का महत्त्व या तो नगण्य है अथवा न के बराबर, इसलिए छोटे बच्चों के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं|

संदीप मेहता ने पिछले लेख पर

निदा फ़ाज़ली की दो पंक्तिया लिखी थी 

बच्चो के हाथो को चाँद सितारे छूने दो,
चार किताबे पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे।

Tuesday, April 14, 2020

मूर्खतापूर्ण समझदारी

हर तरफ होड़ मची है, विद्यार्थियों से ज्यादा व्याकुल विद्यालय हो रहे हैं "ऑन लाइन" कक्षाओं के लिए|
क्या यह वास्तव में विचार पूर्वक लिया गया निर्णय है? उत्तर "हां" भी है और "नहीं" भी| "हां" इसलिए कि जिन विद्यार्थियों को कॉम्पीटिशन अथवा बोर्ड की परीक्षाओं में भाग लेना है उन पर अचानक से अतिरिक्त भार नहीं आ जाए| टाइटल में दी गयी "समझदारी" बस यहीं तक सीमित नहीं है| 
एक बड़े विद्यालय के निदेशक ने कुछ दिन पूर्व फ़ोन पर "ऑन लाइन" कक्षाओं के लिए राय जानने की कोशिश की| वो इस तरह के प्रयोग के विरोधी थे और उसके कारण भी उनने बताये| मेरी भी राय यही थी| आश्वस्त हो गए कि जिन बच्चों को मोबाइल के प्रयोग के लिए सदा से मना करते आये हैं, "ऑन लाइन" कक्षाओं के नाम पर अनावश्यक उस गर्त में डालने का कोई अर्थ नहीं|  साथ ही तर्क यह भी था कि छोटी कक्षाओं के लिए तो इसकी आवश्यकता इसलिए भी नहीं है कि कॉम्पीटिशन या बोर्ड जैसी चिंता उनके लिए नहीं| अच्छा भी है वे इस बहाने अधिक से अधिक समय परिवार के साथ, नवाचार के साथ, अपनी प्रतिभा के साथ बिता सकेंगे|
ऐसी ही राय अन्य विद्यालयों की भी थी| 7 वीं कक्षा तक तो इस तरह का प्रयोग करने की सभी जगह "ना" थी|
 बस समझदारी सैद्धांतिक ही थी|
शेष जो हुआ या तो मूर्खतापूर्ण है अथवा देखादेखी है| दुःख की बात तो ये है कि जो अपनी बात पर कुछ दिन खुद नहीं टिक सकते, उनसे क्या अपेक्षा की जाए बच्चों के भविष्य को लेकर|
बड़े विद्यालय किसी प्रभाव के कारण, मध्यम श्रेणी के उनके दबाव के कारण और शेष देखादेखी|
ये है हमारी मूर्खतापूर्ण समझदारी जिसका आधार या तो चंद लोगों का प्रभाव है, अथवा अपने से बड़ों का दबाव है अथवा केवल देखादेखी| फिर क्यों नहीं निर्णय प्रकृति अपने हाथों में ले|