Tuesday, October 5, 2021

आश्वासन (एक शिक्षक का एक गुरु को)

 आश्वासन

आँधियों के दौर में भी, मैं दिया बनकर जलूँगा,
कुण्ड कितना भी हो मैला, मैं कमल बनकर खिलूँगा।
आपकी शुभ प्रेरणा ने, मुझको एक शिक्षक बनाया,
आपकी उस प्रेरणा को व्यर्थ मैं जाने न दूंगा।
आँधियों के दौर में भी, मैं दिया बनकर जलूँगा ....
जो अनल का ज्वार देकर, आपने पोषित किया है,
जो विजय का मंत्र देकर, मुझको अनुरक्षित किया है,
वह प्रलय का गान बनकर, धमनियों में बह रहा है,
उस रक्त का हर एक कतरा, साथ ले आगे बढूंगा।
आँधियों के दौर में भी, मैं दिया बनकर जलूँगा .....
गर रुदन के आंसुओं पर करुण मन ऐंठा रहा तो,
यदि धरा की चीख सुनकर शांत सा बैठा रहा तो,
कठिन राहें हैं अगर यह सोंचकर पीछे हटा तो,
आपके उस वंश को शायद कलंकित ही करूंगा।
आँधियों के दौर में भी, मैं दिया बनकर जलूँगा .....
है विधाता, आप मेरी साधना को शक्ति देना,
इस समर के प्रभंजन में भी विजय अनुरक्ति देना,
हो दिव्यता का आचरण और कर्म में पुरुषार्थ मेरे,
दूत बनकर प्रगति के अभियान को रक्षित करूंगा।
आँधियों के दौर में भी, मैं दिया बनकर जलूँगा .....
- डॉ. विवेक विजय

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