इस बार की होली - मेरी अपनी
खुशियों के रंग और स्नेह की मिठास का प्रतीक पर्व है - होली।
हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी त्यौहार तो अपनी तिथी से आ गया किंतु उत्साह,
उल्लास और उमंग के प्रतीक सिमट गए। मन तो पहले से ही अलग अलग चल रहे
थे, इस दो गज की दूरी ने शारीरिक दूरियां भी बढ़ा दी है।
तकनीकी दूरी कम ना हो इसके चलते कुछ संदेशों का आदान-प्रदान अवश्य हुआ है। इनमें
कदाचित 5 प्रतिशत ही हैं जो खुद से लिखे गए हैं, शेष तो किसी के किसी को ही चिपक रहे हैं।
ये सब वैसे तो परिस्थितिजन्य है, किंतु
जो चुनिंदा लोग सोंच सकते हैं उनके लिए चिंतनपरक भी है।
इस समय भरतभूमि पर जीवित प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह ऐसा पहला अवसर है जब
होली जैसे त्यौहार को मनाने का आधार सरकार द्वारा जारी की गई मार्गदर्शिका है।
वास्तव में तो यह पहला अवसर है जब ईश्वर ने निर्णय लेने के सभी अधिकार मनुष्य से
छीनकर अपने हाथों में ले लिये हैं। यहाँ तक कि दूसरों से मिलना,
उनके साथ समय बिताना, किसी अच्छे स्थान पर
घूमकर आना जैसे निर्णय लेने के लिए भी मनुष्य स्वतंत्र नहीं रह गया है।
फिर कैसे खुशियों का रंग लगे? कैसे
स्नेह की मिठास अपनों तक पहुँचे? कैसे होली का उल्लास मन को
हर्षित करे?
इन प्रश्नों के उत्तर व्यावहारिक तौर पर किसी के पास दिखाई नहीं देते।
चिंतनशील व्यक्ति जब गहराई से विचार करते हैं तो समझ आता है कि ईश्वर ने
मनुष्य को खुद को जानने के लिए एवं उस समझ से सामाजिक नवनिर्माण में अपना योगदान
देने के लिए सर्वशक्तिमान बनाकर भेजा था। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाए कि मनुष्य ने
चालाकी से इस क्रम को बदल दिया है। मनुष्य खुद को जानने से अधिक दूसरों को मानने
एवं उनकी समझ के आधार पर विकास के क्रम में लग गया। परिणामतः सामाजिक नवनिर्माण की
गति भले ही कम नहीं हुई हो किंतु स्वयं को जानने का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया।
प्रकृति कहें अथवा ईश्वर, सभी शक्तियाँ इस
समय मनुष्य को भीड़ भरे अकेलेपन से नवाचार के एकांत की ओर धकेल रही हैं। एकांत में
खुद के पास बैठकर, खुद के विषय में चिंतन करना और उस आधार पर
स्वयं को परिष्कृत करने को युगऋषि ने जीवन साधना नाम दिया है।
इस परिष्कृत करने की यात्रा में खुशियों के रंगों के स्थान पर आनंद का रस
है, स्नेह की मिठास के स्थान पर अपनों का
विश्वास है।
इस बार की होली मेरी अपनी हो, जिसमें
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खुशियों के रंगों का आभास सीमित ना हो,
अपनों पर अपनों का विश्वास परिमित ना हो।
बहुत सुंदर विचार
ReplyDeletedhanyawad
DeleteAdabhut 🙌
ReplyDeleteThanks
DeleteAtti sundar sir, Mae naa kehta tha ki aap ho ek gupt kavi
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