"ऑनलाइन केवल प्रशिक्षण हो सकता है शिक्षण नहीं, और बहुत छोटे बच्चों के लिए प्रशिक्षण का आपातकाल नहीं होता|"
फेसबुक पर लिखी गयी इस पंक्ति को पढ़कर कई लोगों ने पहली बार प्रशिक्षण और शिक्षण में अंतर जानने का प्रयास किया| कुछ के लिए तो दोनों लगभग एक जैसे ही होते हैं, दुःख की बात तो ये है कि इन "कुछ" में से कुछ शिक्षण संस्थानों की कुर्सियों को शोभित कर रहे हैं|
साधारण शब्दों में,
प्रशिक्षण (Training) - बाहर से भीतर जाने की प्रक्रिया है, वहीं
शिक्षण (Teaching) - भीतर से बाहर आने की प्रक्रिया है|
दूसरे शब्दों में,
प्रशिक्षण देने की प्रक्रिया हो सकती है, शिक्षण तो ग्रहण करने की प्रक्रिया है|
समझने की बात ये है कि देने की प्रक्रिया (प्रशिक्षण) में देने वाले की ही भूमिका होती है, ग्रहण करने वाले का या तो नगण्य अथवा न के बराबर| जबकि ग्रहण करने की प्रक्रिया (शिक्षण) में ग्रहण करने वाले की भूमिका महत्त्व की है, देने वाला (शिक्षक) सबको एक तराजू में नहीं टोल सकता|
एक और महत्वपूर्ण अंतर यह है कि प्रशिक्षण - कौशल विकास की प्रक्रिया है जबकि शिक्षण - व्यक्तित्व विकास की| व्यक्तित्व का विकास बिना सामने बैठाये कैसे संभव है|
इसीलिये शिक्षण का ऑनलाइन होना संभव नहीं|
चूंकि छोटे बच्चों के लिए कौशल विकास का महत्त्व या तो नगण्य है अथवा न के बराबर, इसलिए छोटे बच्चों के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं|
संदीप मेहता ने पिछले लेख पर
निदा फ़ाज़ली की दो पंक्तिया लिखी थी
बच्चो के हाथो को चाँद सितारे छूने दो,
चार किताबे पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे।
फेसबुक पर लिखी गयी इस पंक्ति को पढ़कर कई लोगों ने पहली बार प्रशिक्षण और शिक्षण में अंतर जानने का प्रयास किया| कुछ के लिए तो दोनों लगभग एक जैसे ही होते हैं, दुःख की बात तो ये है कि इन "कुछ" में से कुछ शिक्षण संस्थानों की कुर्सियों को शोभित कर रहे हैं|
साधारण शब्दों में,
प्रशिक्षण (Training) - बाहर से भीतर जाने की प्रक्रिया है, वहीं
शिक्षण (Teaching) - भीतर से बाहर आने की प्रक्रिया है|
दूसरे शब्दों में,
प्रशिक्षण देने की प्रक्रिया हो सकती है, शिक्षण तो ग्रहण करने की प्रक्रिया है|
समझने की बात ये है कि देने की प्रक्रिया (प्रशिक्षण) में देने वाले की ही भूमिका होती है, ग्रहण करने वाले का या तो नगण्य अथवा न के बराबर| जबकि ग्रहण करने की प्रक्रिया (शिक्षण) में ग्रहण करने वाले की भूमिका महत्त्व की है, देने वाला (शिक्षक) सबको एक तराजू में नहीं टोल सकता|
एक और महत्वपूर्ण अंतर यह है कि प्रशिक्षण - कौशल विकास की प्रक्रिया है जबकि शिक्षण - व्यक्तित्व विकास की| व्यक्तित्व का विकास बिना सामने बैठाये कैसे संभव है|
इसीलिये शिक्षण का ऑनलाइन होना संभव नहीं|
चूंकि छोटे बच्चों के लिए कौशल विकास का महत्त्व या तो नगण्य है अथवा न के बराबर, इसलिए छोटे बच्चों के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं|
संदीप मेहता ने पिछले लेख पर
निदा फ़ाज़ली की दो पंक्तिया लिखी थी
बच्चो के हाथो को चाँद सितारे छूने दो,
चार किताबे पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे।
प्रशिक्षण तो जानवरों का भी हो सकता है लेकिन शिक्षण नहीं
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ReplyDeleteIt's commendable, nothing could have been better than this. गागर में सागर जैसा।
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