प्रखर दिनचर्या
सुबह के 9:00 बज रहे हैं प्रखर की मां हर रोज की तरह उसे उठाने के लिए आवाज दे रही है। हर दिन की तरह ही लगभग 30 मिनट के प्रयास के पश्चात आंख खुल गई। पहले यह भी जानना जरूरी है कि प्रखर है कौन? प्रखर एक बढ़िया कॉलेज में पढ़ाई कर रहा है, कदाचित ऐसे कॉलेज में जहां तक पहुंचना विद्यार्थियों का सपना होता है। 10:00 बजे से ऑनलाइन क्लास कर लिंक जॉइन करना है, साथ-साथ नित्यकर्म भी चलते रहेंगे। नहाए तो ठीक नहीं नहाए तो भी ठीक। बस लैपटॉप लेकर बैठ जाना, वहीं जहां कुछ देर पहले आंख खुली थी। क्लास ना भी हो तो भी लैपटॉप पर "बहुत कुछ है" करने को। थोड़ी देर बाद मां उसी बिस्तर पर नाश्ता देने आई तो वही प्रतिदिन का वाक्य दोहरा दिया - "देख कल की प्लेट भी उठा कर नहीं रखी है तूने"। फिर हर दिन की भांति ही प्लेट उठा कर ले गई। दोपहर हुई तो मां ने लंच के लिए आवाज लगाई। 15-20 मिनट की आवाजों के बाद प्रखर उठा और लंच करने चल दिया। बस यही समय होता है जब लैपटॉप थोड़ी सांस ले पाता है। ये अलग बात है कि इस समय टीवी पर कुछ और चल जाता है। 1 घंटे के बाद फिर से उसी आसन में पहुंच गया जिसे कक्षा का नाम दिया गया था। शाम होते-होते मां हर दिन की तरह चिल्लाई - "थोड़ा तो घर से बाहर निकलो क्या दिन भर घर में ही स्क्रीन के आगे लगे रहते हो"। प्रखर एक अच्छे कॉलेज में हैं जहां कक्षा के अतिरिक्त बहुत सी अन्य गतिविधियां भी होती है। ऑनलाइन के समय में ये सब भी ऑनलाइन है और इनमें से हर दिन किसी एक मीटिंग में प्रखर की शाम गुजर ही जाती है। अगर कभी मीटिंग ना भी हो तो यूट्यूब, इंस्टाग्राम जैसे अन्य बहुत से माध्यम है प्रखर को व्यस्त रखने के लिए। डिनर के समय फिर से प्रखर के लैपटॉप ने राहत की सांस ली, स्किन बदल गई, TV ऑन हो गई। डिनर के बाद फिर से कक्षासन में पहुंच गया और फिर रात कितने बजे हुई किसी को पता नहीं। इस प्रकार की दिनचर्या पर मां - पिताअगर गुस्सा भी करते हैं तो प्रखर के पास अपने तर्क होते हैं।
इस समय हर घर में प्रखर है और यही दिनचर्या दिखाई भी दे रही है। जिसके घर में प्रखर नहीं वह कहानी सुनने पर या तो मां को दोष देगा या प्रखर को, किंतु इस दोष से कुछ भी सुधरने वाला है नहीं।चिंता की बात तो यह है कि हम सभी लोग इस भ्रम में हैं कि कोविड की स्थिति ठीक होने पर सब कुछ ठीक हो जाएगा और इससे भी अधिक चिंता इस बात की है कि शिक्षाविद भी राजनीतिज्ञों की भांति समय के सामने आत्मसमर्पण कर चुके हैं। कारण बहुत हैं चिंता के किंतु समाधान की भी कमी नहीं।
करना इतना भर है कि समग्र विकास की परिभाषा को संतुलन की कसौटी पर कसा जाए।
- विवेक