हर तरफ होड़ मची है, विद्यार्थियों से ज्यादा व्याकुल विद्यालय हो रहे हैं "ऑन लाइन" कक्षाओं के लिए|
क्या यह वास्तव में विचार पूर्वक लिया गया निर्णय है? उत्तर "हां" भी है और "नहीं" भी| "हां" इसलिए कि जिन विद्यार्थियों को कॉम्पीटिशन अथवा बोर्ड की परीक्षाओं में भाग लेना है उन पर अचानक से अतिरिक्त भार नहीं आ जाए| टाइटल में दी गयी "समझदारी" बस यहीं तक सीमित नहीं है|
एक बड़े विद्यालय के निदेशक ने कुछ दिन पूर्व फ़ोन पर "ऑन लाइन" कक्षाओं के लिए राय जानने की कोशिश की| वो इस तरह के प्रयोग के विरोधी थे और उसके कारण भी उनने बताये| मेरी भी राय यही थी| आश्वस्त हो गए कि जिन बच्चों को मोबाइल के प्रयोग के लिए सदा से मना करते आये हैं, "ऑन लाइन" कक्षाओं के नाम पर अनावश्यक उस गर्त में डालने का कोई अर्थ नहीं| साथ ही तर्क यह भी था कि छोटी कक्षाओं के लिए तो इसकी आवश्यकता इसलिए भी नहीं है कि कॉम्पीटिशन या बोर्ड जैसी चिंता उनके लिए नहीं| अच्छा भी है वे इस बहाने अधिक से अधिक समय परिवार के साथ, नवाचार के साथ, अपनी प्रतिभा के साथ बिता सकेंगे|
ऐसी ही राय अन्य विद्यालयों की भी थी| 7 वीं कक्षा तक तो इस तरह का प्रयोग करने की सभी जगह "ना" थी|
बस समझदारी सैद्धांतिक ही थी|
शेष जो हुआ या तो मूर्खतापूर्ण है अथवा देखादेखी है| दुःख की बात तो ये है कि जो अपनी बात पर कुछ दिन खुद नहीं टिक सकते, उनसे क्या अपेक्षा की जाए बच्चों के भविष्य को लेकर|
बड़े विद्यालय किसी प्रभाव के कारण, मध्यम श्रेणी के उनके दबाव के कारण और शेष देखादेखी|
ये है हमारी मूर्खतापूर्ण समझदारी जिसका आधार या तो चंद लोगों का प्रभाव है, अथवा अपने से बड़ों का दबाव है अथवा केवल देखादेखी| फिर क्यों नहीं निर्णय प्रकृति अपने हाथों में ले|
क्या यह वास्तव में विचार पूर्वक लिया गया निर्णय है? उत्तर "हां" भी है और "नहीं" भी| "हां" इसलिए कि जिन विद्यार्थियों को कॉम्पीटिशन अथवा बोर्ड की परीक्षाओं में भाग लेना है उन पर अचानक से अतिरिक्त भार नहीं आ जाए| टाइटल में दी गयी "समझदारी" बस यहीं तक सीमित नहीं है|
एक बड़े विद्यालय के निदेशक ने कुछ दिन पूर्व फ़ोन पर "ऑन लाइन" कक्षाओं के लिए राय जानने की कोशिश की| वो इस तरह के प्रयोग के विरोधी थे और उसके कारण भी उनने बताये| मेरी भी राय यही थी| आश्वस्त हो गए कि जिन बच्चों को मोबाइल के प्रयोग के लिए सदा से मना करते आये हैं, "ऑन लाइन" कक्षाओं के नाम पर अनावश्यक उस गर्त में डालने का कोई अर्थ नहीं| साथ ही तर्क यह भी था कि छोटी कक्षाओं के लिए तो इसकी आवश्यकता इसलिए भी नहीं है कि कॉम्पीटिशन या बोर्ड जैसी चिंता उनके लिए नहीं| अच्छा भी है वे इस बहाने अधिक से अधिक समय परिवार के साथ, नवाचार के साथ, अपनी प्रतिभा के साथ बिता सकेंगे|
ऐसी ही राय अन्य विद्यालयों की भी थी| 7 वीं कक्षा तक तो इस तरह का प्रयोग करने की सभी जगह "ना" थी|
बस समझदारी सैद्धांतिक ही थी|
शेष जो हुआ या तो मूर्खतापूर्ण है अथवा देखादेखी है| दुःख की बात तो ये है कि जो अपनी बात पर कुछ दिन खुद नहीं टिक सकते, उनसे क्या अपेक्षा की जाए बच्चों के भविष्य को लेकर|
बड़े विद्यालय किसी प्रभाव के कारण, मध्यम श्रेणी के उनके दबाव के कारण और शेष देखादेखी|
ये है हमारी मूर्खतापूर्ण समझदारी जिसका आधार या तो चंद लोगों का प्रभाव है, अथवा अपने से बड़ों का दबाव है अथवा केवल देखादेखी| फिर क्यों नहीं निर्णय प्रकृति अपने हाथों में ले|
Excellebt and remarkable thoughts prof Vijay. Thanks for opening this issue by which everyone getting affected. This is really happening with everyone of us. Students who live in villages and remote places are calling me with a great pain. how can they afford all these net connectivity etc. And the online Tamasha has created unhealthy atmosphere!!! Thanks again
ReplyDeleteThanks Dr Patil. I was scared before opening the issue but it was becoming painful to see all these kids running around digital devices. Thanks for your appreciation
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