हमारे समय में तो.....
चित्रकार जो भी हो, कहानीकार हर कोई है । प्रत्येक व्यक्ति अपनी कहानी खुद बनाता है, कोई लिख देता है तो कोई मन के एक कौने में उसे दबा कर रख देता है । कभी ना
कभी बातों-बातों में कुछ अंश निकल भी जाते हैं।
जैसे अधिकांश काल्पनिक कहानियाँ "एक बार की बात
है" से प्रारंभ होती है, वैसे
ही मन की इन कहानियों की शुरूआत "हमारे समय में तो" से शुरू होती है।
इनका आरंभ जब कभी भी हुआ होगा तो ये एक समय के अनुभव को दूसरे समय तक पहुँचाने के
काम आती रही होगी। किंतु समय की गति के साथ इन "हमारे समय में तो" प्रकार
की कहानियों के उद्देश्य और प्रस्तुतीकरण के तरीके बदलते गए।
अब इनके उद्देश्य चार प्रकार के दिखाई देते हैं -
1. अपने अनुभव से अगली पीढ़ी को सिखाने हेतु
2. बदलते समय में बदलते संसाधनों के कारण होते जा रहे बेहतरीन समय की तुलना में पहले के समय को मूल्यवान बनाकर प्रस्तुत करने हेतु
3. परंपरावादी और हठधर्मियों का अपने अस्तित्व को बनाये रखने हेतु
4. खुद के किये गये कार्यों का लेखा-जोखा बढ़ा-चढ़ाकर एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करने हेतु
युगऋषि कहते हैं -
"भूत का विश्लेषण और भविष्य का चिंतन उतना ही हो
जिससे स्वयं के अथवा किसी अन्य के वर्तमान को संवारने में सहयता मिल सके।"
इस प्रकार के चिंतन को अपना सकने पर मनुष्य के लिए "हमारे समय में तो" जैसी कहानियाँ मात्र अनुभव का लाभ देने तक सीमित हो सकेगी।
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