Saturday, May 13, 2023

रिजल्ट की हाय तौबा

रिजल्ट की हाय तौबा 
कई दिनों से किया जाने वाला इंतजार खत्म हुआ। सीबीएसई ने पहले 12वीं और फिर 10वीं परीक्षा का परिणाम एक ही दिन में जारी कर दिया। अंको की बारिश इस बार भी अपेक्षा से अधिक तेज हुई। जैसे ही खुद के अंक पता चले बच्चे एकदम खुश हो गए किंतु जैसे ही अपने साथियों के अपने से ज्यादा अंक सुनने को मिले तो चेहरा अचानक से उदास भी हो जाता। यह स्वाभाविक भी है कि अंकों में भी तो सापेक्षता सिद्धांत लागू होता है। प्रखर की तो अपेक्षा ही 80 से 85% अंकों की थी किंतु उसके अंक 89% थे। खुशी केवल 5 मिनट ही रही क्योंकि इसके बाद उसे उसके दोस्तों के रिजल्ट भी पता लगने लगे।
बच्चों से ज्यादा परीक्षा तो पेरेंट्स की दिखाई देती है। पेरेंट्स अपने आपको खुद ब खुद तीन केटेगरी में बांट लेते हैं।
 पहली श्रेणी है उछल कूद पेरेंट्स की। इसमें वो लोग हैं जिनके बच्चों के अंक उनके अड़ोसी – पड़ोसी और बच्चों के दोस्तों से कुछ ज्यादा है। मतलब पहले 10% में। इनकी उछल कूद की कोई सीमा नहीं होती। फेसबुक पर, इंस्टाग्राम पर तो ऐसे ऐसे व्हाट्सएप ग्रुप तक भी पहुंच जाते हैं जिनको कभी देखा भी नहीं था। अंकों का यह प्रदर्शन इनकी महत्वाकांक्षाओं का प्रदर्शन माना जा सकता है। खुशियां मनाते मनाते ये भूल जाते हैं कि ये जिनको मैसेज कर रहे हैं उनमें से कई ऐसे भी हैं जो अंकों के गम में डूबे हुए हैं।
दूसरी श्रेणी है व्याख्यात्मक अभिभावक की। इनके बच्चों के अंक न तो कम होते हैं और न ही बहुत अधिक। कई बार टाइप करके मैसेज डिलीट कर देते हैं ये। पता ही नहीं चलता कि बधाई लायक हैं भी या नहीं। बिना किसी के पूछे ही ये बताने को आतुर रहते हैं कि इनके बच्चे के साथ क्या क्या समस्या हो गई थी की परीक्षा के दौरान और इसी कारण अंक थोड़े कम रह गए। खुशी और दुख के बीच में घूमते रहते हैं त्रिशंकु की तरह। 
तीसरी श्रेणी समझदार अभिभावकों की है। इनकोअच्छी तरह पता है कि दसवीं की मार्कशीट में दिख रहे अंकों का एक सीमा के बाद कोई खास मूल्य नहीं। यह केवल बर्थ सर्टिफिकेट है। ना तो कोई बहुत ऊपर पहुंचने वाला है और ना ही कोई नीचे गिराने वाला। ये जानते हैं कि अच्छे अंको को जगजाहिर करना खुद का भौंडा प्रदर्शन मात्र है। इससे किसी और का कुछ होगा या नहीं किंतु उनके अपने बच्चे पर दबाव जरूर पड़ेगा। वैसे सच तो यह है कि अंकों की यह माया बच्चों से कहीं अधिक अभिभावकों को प्रभावित करती है। समझदारी तो इसी में है अनावश्यक प्रदर्शन के कारण दूसरों को दुखी न किया जाए।

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