Saturday, October 1, 2011

संबंधों मैं प्यार चाहिए

युग का परिवर्तन करने को अब संकल्पों का हार चाहिए

बहुत ले चुके वसुंधरा से अब उसको अधिकार चाहिए |

धरती को स्वर्ग बनाना है तो व्यक्ति नहीं परिवार चाहिए

घर घर में देवत्व जागेगा संबंधों में प्यार चाहिए ||

थकी मनुजता से समाज में घटाटोप अंधियारा छाया,

हमने अपने ही हाथों से झंझाओं का जाल बिछाया|

अपनी चिर धन लोलुपता हित संवेदना मिटा दी हमने,

खिलते से फूलों के वन में नीरसता फैला दी हमने|

अपनी स्वार्थपरकता में हम रिश्तों को बिसरा बैठे है,

वृद्धाश्रम में माँ रोती है हम अपने घर पर लेटे है |

यह वसुधा संताप कर रही अपने ही निज पोषण पर,

जिसको मधुरस से बड़ा किया अब उतर गया वह शोषण पर |

जो हमसे पूरे ना हो सके कुछ ऐसे सपने थे मन में,

अब थोप दिए संतानों पर और भेज दिया उनको रण में |

क्या ये ही है वात्सल्य छिपा, इस संस्कृति के चन्दन में,

निज अरमानो की खातिर हमने सेंध लगा दी कृन्दन में |

शायद बचपन की यह स्वतन्त्रता, इस दीपक को सूर्या बनाती,

छिपी हुई यह प्रतिभा शायद इस जग को रोशन कर पाती |

छिपी हुई इस प्रतिभा में ही कोई श्रवण कुमार मिलेगा,

कौशल्या सा त्याग हो मन में सजा राम दरबार मिलेगा |

वीर शिवाजी व्याकुल है धरती का भार उठाने को,

पर माँ जीजा सी कोख कहाँ उसको इस भू पर लाने को |

त्याग की मूरत माँ से बस इक खुशियों का हार चाहिए,

श्रेष्ठ कार्य की हो सराहना ऐसा एक परिवार चाहिए,

जहाँ स्नेह की हर पल छाया ऐसा एक संसार चाहिए,

खिलती हुई नई कलियों को कार नहीं बस प्यार चाहिए ||

2 comments:

  1. सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  2. bahut sundar upma aur rupak ka prayog kiya hai..

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