Friday, November 12, 2010

अजन्मी आत्मा

इक अजन्मी आत्मा ने बादलों की ओट से
देखा विदारक दृश्य तो वह खिलखिलाकर हंस पड़ी

था स्वप्न या कटु सत्य यह, कैसा विहंगम दृश्य यह
दे चुनौती ईश को, मानव भविष्य बना रहा

जन्म कितना सुखद है उस बेजुबां से जीव का
पैदा हुआ तो कलेक्टर पैदा हुई तो डॉक्टर

हर तरफ आलोक है, हर घर प्रफुल्लित हो रहा
मौन सा वह जीव बस, आभार की मुद्रा लिए

कैसा सुखद परिवेश और स्वछंद सा प्रतिवेश भी
हर घडी यह लग रहा आज़ाद हर एक सांस है

पर क्या पता था क्या खबर, आज़ाद जो ये सांस है
हर किसी के ह्रदय में इस जीव से कुछ आस है

छद्म सा स्वातंत्र्य था वह स्वप्न सा व्यवहार था
उसके भविष्य का हर एक पल तो एकदम तैयार था

बन गया वह जो बनाया, रच गया जैसा रचाया
पढ़ गया जो कुछ पढ़ाया, खेल खेला जो खिलाया

समझ के जब दायरे में पहुंचकर देखा अतीत
तब समझ आया, उजाला दिख रहा था, था नहीं

जग ने उसे था बना डाला या स्वयं ही बन गया
क्या पता वह क्या बना इंसान पर बन ना सका

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