Friday, May 22, 2009

लड़की

चंद्रमा से चाँदनी, पृथ्वी से धैर्य
अग्नि से चपलता, वायु से सरसता
पुष्प से सुगंधि, मधु से माधुर्य
दीप से ज्योति और सीप से मोती लेकर तस्वीर में उतारा होगा
तब कहीं परमात्मा ने लडकी को बनाया होगा

लड़की यदि
माँ है तो ममता का दुलार है
बहिन है तो भाई का प्यार है
काकी है तो कर्तव्य का निखार है
पत्नी है तो पति का श्रृंगार है

प्रेम की परीक्षा में मीरा है
धैर्य की समीक्षा में सीता है
धैर्य टूट जाए तो दुर्गा है
साथ छूट जाए तो पद्मिनी है
दुखियों की सेवा में टेरेसा है
देश की रक्षा में लक्ष्मी बाई है

मगर हाय रे इश्वर है विधाता
तेरी बनाई सृष्टि तो न जाने कहाँ गयी
लगता है उस घर को दीमक खा गयी
लड़की तो वही है न जाने किस धारा में बही है

शर्म का परदा तन से कपड़े की तरह हट गया
एक लड़की का कपड़ा अब दो में बंट गया
कल की लडकी के आदर्श श्रीराम थे
आज के तो ऋतिक ही घनश्याम है
न जाने कब थमेगा कारवां
शर्म से झुकने लगा है आसमान
तब रुकेगी वासना की आंधियां
जब लौट आयेंगे शर्म और हया

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