शिक्षक की आस
शुभकामनाओं की आस में दिन गिनते रहते थे,
बड़ी बेसब्री से इंतजार करते रहते थे|
अंधेरों को स्वर्णिम रश्मियों से रोशन कर दे, उस सूर्य सा दिव्य प्रकाश था।
हर वर्ष की भांति पकवानों का थाल सजाकर,
मन में भिन्न-भिन्न आशीर्वादों के शब्द बनाकर,
विश्वास का दीपक सजाए बैठे थे,
विद्यार्थियों के आने की आशा लगाए बैठे थे।
मन में भिन्न-भिन्न आशीर्वादों के शब्द बनाकर,
विश्वास का दीपक सजाए बैठे थे,
विद्यार्थियों के आने की आशा लगाए बैठे थे।
दिन भी ढलने लगा, सांझ भी चलने लगी,
उम्मीदों की बर्फ धीरे-धीरे पिघलने लगी।
उम्मीदों की बर्फ धीरे-धीरे पिघलने लगी।
सुबह तक जिनको अपने शिक्षक होने पर गुमान था,
अपना कार्य, अपने पद की गरिमा जिन का सबसे बड़ा स्वाभिमान था,
सांझ के सूर्य के साथ उनकी आशाएं भी ढलने लगी,
बदली हुई भावनाएं कड़वे शब्दों के रूप में निकलने लगी।
आक्रोशित देखकर पत्नी ने अपनी ही पढ़ाई सीख याद दिलाई,
फल की इच्छा में नहीं कर्म करते जाने में ही है भलाई।
फल की इच्छा में नहीं कर्म करते जाने में ही है भलाई।
इतना सुनते ही अपनी गलती का एहसास हो गया,
मन के भीतर का तमस फिर से पुण्य प्रकाश हो गया।
मन के भीतर का तमस फिर से पुण्य प्रकाश हो गया।
फिर जैसे ही भीतर गए मोबाइल पर वीडियो संदेश मिला,
मन के भीतर उम्मीदों का कमल खिला।
विद्यार्थियों की ओर से भेजा गया यह संदेश सबसे बड़ा सम्मान था,
सोने से पहले एक बार पुनः उनको अपने शिक्षक होने पर अभिमान था।
सोने से पहले एक बार पुनः उनको अपने शिक्षक होने पर अभिमान था।
- विवेक
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ����
ReplyDelete������
Happy teachers day sir
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
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