Monday, July 12, 2021

सुनने और समझने का समय


विगत लगभग दो वर्षों से सम्पूर्ण विश्व कठिनाईयों के विषम दौर से गुजर रहा है। किसी ने अपने खोये हैं तो किसी ने सपने खोये हैं। दुखी सब हैं, कोई तन से, कोई धन से तो कोई मन से। अनेकों ऐसी कहानियाँ रोंगटे खड़े करती हुई गुजर गई जिनमें पीड़ा चरम सीमा से भी परे थी।

दो महीने से अधिक का समय हो गया एक 45 वर्षीय युवह को अस्पताल में भर्ती हुए। घर पर पिता, लगभग दो वर्ष के अन्तर का भाई, दोनों भाईयों की पत्नियाँ और चार बच्चे। दो माह पूर्व सब कुछ व्यवस्थित ही था, आपस में प्रेम की भी कोई कमी नहीं। विगत 60 दिनों के भीतर बीमार युवक की पत्नी एवं भाई पूर्ण मनोयोग से उसे स्वस्थ देखने हेतु जी जान से लगे हुए थे। अचानक से खबर आयी कि स्वस्थ भाई की पत्नी मानसिक व्यथा को बरदाश्त नहीं कर पायी और मौत की गोद में समा गई। आगे क्या होगा, कैसे सब कुछ ठीक होगा, यह तो वह जाने जिसने परिस्थितियाँ पैदा की। चिंतन का विषय यह है कि क्या इस सबके बीच तन, मन एवं धन से अधिक स्वस्थ व्यक्ति कुछ योगदान दे सकते हैं।

आँकलन करने पर लगेगा कि विगत दिनों में जो सर्वाधिक खोया है वह है - सकारात्मक चिंतन, आशा और विश्वास।

क्यों हुआ, कैसे हुआ इसका तर्क तो अलग विषय है किंतु जो मान सकते हैं कि वैश्विक स्तर पर हमने इन तीनों की कमी को अनुभव किया है, वे आवश्यक रूप से कुछ कर सकते हैं। जो भी स्वयं को बुद्धिजीवी मानते हैं उनका उत्तरदायित्व है कि कष्ट और पीड़ा सह रहे जानने वाले परिवार के प्रत्येक सदस्य से लगातार संपर्क में रहें। शारीरिक बीमारी से अधिक मानसिक दुविधा से बाहर निकालने के लिए मनोबल बढ़ायें।

एक उदाहरण महाभारत से याद आता है जब युधिष्ठिर सहित सभी पांडव जुएँ में हारकर अत्यंत दुखी होकर वनवास काट रहे थे। तभी एक ऋषि ने आकर नल और दमयंती की कथा सुनाई। ऐसी कथा जिसमें पांडवों से भी अधिक कष्ट होने के बाद भी नल ने हिम्मत नहीं हारी।

प्रश्न यह भी उठा कि पांडव स्वयं इतने समझदार थे कि इस प्रकार की कथा एक दूसरे को सुनाकर मनोबल ऊपर उठा सकते थे फिर किसी अन्य की आवश्यकता क्यों?

इसका उत्तर यही है कि जब पूरा परिवार अवसाद अथवा तनाव की स्थिति में हो तो स्वयं का मनोबल उठाये रखना भी कठिन कार्य है, ऐसे में परिवारजनों के साथ बातचीत झंझलाहट अथवा चिड़चिड़ेपन से शुरु होकर वहीं समाप्त हो जाती है।

बुद्धिजीवी व्यक्ति दो कार्य सहज कर सकते हैं -

1. सुनने का - पीड़ा से ग्रस्त व्यक्ति को सुनने मात्र से उसका भारीपन कम हो जाता है।

2. समझकर समझाने का - पीड़ित व्यक्ति के कष्ट का कारण समझकर उसके अनुसार मनोबल को ऊँचा उठाने हेतु थोड़ा समझाने का प्रयास करें।

 

"कष्ट में जो जी रहे हैं एक पग उन तक बढ़ा लो,

कुछ रुदन के आंसुओं में एक क्षण अपना मिला लो।"

 

-विवेक

 

4 comments:

  1. किसी के काम जो आए उसे इंसान कहते है

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  2. जो मुश्किल में न घबराए, उसे इंसान कहते हैं।

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  3. इस मुश्किल घड़ी में यही सब चल रहा है कि कुछ अपनी कहना और कुछ दूसरो की सुनना और एक दूसरो को होंसला देना की अच्छा समय फिर से लौट आएगा।👍

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  4. This comment has been removed by the author.

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