एक ऐसी कविता जो एक तुलना है, न मेरे विचार है, न मेरे शब्द हैं | हाँ, लिखने का श्रेय फिर भी मुझे ही है |
जो बीत गया वो बना रहा ….
जो बीत गया वो बना रहा ….
जीवन में एक सितारा था
मुझको वो बेहद प्यारा था
वो चला गया वो डूब गया
अम्बर का आँगन भी रोया
जब भी इसका तारा टूटा
जब भी इसका प्यारा छूटा
मैंने हर टूटे तारे पर
अम्बर को रोते देखा है
जो बीत गया वो बना रहा ….
जीवन में था वो एक सुमन
थे उस पर नित्य न्योछावर हम
वो बिखर गया वो सूख गया
वो प्यारा मुझसे रूठ गया
मधुबन का भी तो हाल यही
जब भी सूखी इसकी कलियाँ
जब तक मुरझाई खिली नहीं
मुरझाये सूखे फूलों पर
मधुबन भी शोक मनाता है
जो बीत गया वो बना रहा ….
जो बीत गया वो बना रहा ….
जीवन मधुरस का प्याला था
हमने तन मन दे डाला था
वो छूट गया वो टूट गया
मदिरालय का मन भी देखो
जब भी कोई प्याला हिलता है
जब मिटटी मे मिल जाता है
नए प्याले की आहट तक
मदिरालय भी पछताता है
जो बीत गया वो बना रहा ….
मृदु मिटटी के जो बने हुए
मधुघट जब फूटा करते है
एक छोटा सा जीवन इनका
फिर क्यों ये टूटा करते है
मदिरालय के अन्दर भी तो
मधुघट मधु के ही प्याले है
ये मादकता से भरे हुए
वो मधु से प्यास बुझाते है
वो पीनेवाला ही कैसा
प्यालों से जिसको प्यार न हो
जो सच्चे मधु का प्यासा है
वो रोता है चिल्लाता है
जो बीत गया वो बना रहा ….
बहुत बढ़िया भाई साहब
ReplyDelete