माँ वाणी का ह्रदय अंश मैं, शब्दों की परिचायक हूँ,
शिक्षा मुझको नाम मिला मैं संस्कृति का नायक हूँ |
मैं ब्रह्मा का ब्रह्मज्ञान हूँ, नारायण का दिया दान हूँ,
जिसको पूजा जटारूप में, मैं शंकर का दिव्य भान हूँ |
मैंने ही संस्कार दिए हैं, धर्म कर्म त्यौहार दिए हैं
वसुंधरा के हर ज़र्रे को मौलिक हर अधिकार दिए हैं |
बिन मेरे भगवान अधूरा, वेदों का भी ज्ञान अधूरा,
उपनिषदों और आर्षग्रंथ को, मिला है जो सम्मान अधूरा |
मैंने पूर्ण किया भाषा को, हर बच्चे की अभिलाषा को,
अन्धकार से घिरी निशा में, जलते दीपों की आशा को |
मुझसे ही तो है कुरान, गुरु के ग्रंथों का ग्रंथज्ञान,
हो बाइबिल का शब्द शब्द, चाहे गीता का ब्रह्मज्ञान |
रामचरित हो तुलसी की या बाल्मिकी रामायण हो,
वेदव्यास की रचित कथा या किसी छंद का गायन हो |
तक्षशिला का मैं हूँ चेहरा, नालंदा के सर का सेहरा,
रामकृष्ण की इस धरती पर गौरवमयी इतिहास है मेरा |
बिन मेरे बोलो राम कहाँ, माँ मीरा का घनश्याम कहाँ,
नानक कबीर के दोहों का, मेरे बिन कोई दाम काम कहाँ |
आज़ादी हासिल करने जब वीरों ने कलम संभाली थी,
उस हवनकुंड की अग्नी में मैंने भी समिधा डाली थी |
जब सजा तिरंगा दिल्ली पर, वीरों की अमर कहानी का,
वह उत्सव था आजादी का, हर हर्षित हिन्दुस्तानी का |
मैं अपने को बहला न सकी, थी कोने में खामोश खड़ी,
क्या हट पायेगी मुझ पर से, जो पाश्चात्य की परत चढी |
मैं जुदा हो गयी विध्या से, अब मन अन्दर तक रोया है,
पहचान गयी तो गम न था, अब स्वाभिमान भी खोया है |
अब रामानंद का राम बचा वह तुलसी का श्रीराम कहाँ,
क्या होगा पूजा स्थल का अब रजनी है घनश्याम कहाँ |
वह पतिव्रता पांचाली अब तो चीर हरण में दिखती है,
माता सीता के चित्रों संग बस अगरबत्तियां बिकती है |
मैं गंगाजल सी थी पवित्र, था श्वेत धवल मेरा चरित्र,
अब जो प्रतिवेश मिला मुझको, अपनों में मैं लगती विचित्र |
मेरे मंदिर के गलियारे अब सुस्त दिखाई पड़ते है,
बच्चे मस्ती करते थे जहाँ, शिक्षक आपस में लड़ते हैं |
मेरी गरिमा का ह्वास हुआ, मेरे अपने ही आँगन में,
अब संस्कृति की झलक कहाँ, प्यारे बच्चों के क्रंदन में |
गांधी पूछो तो राहुल है, और अजय बना है भगत सिंह,
गुरु तेगबहादुर भूल गए, सरदार याद हरभजन सिंह |
जब कलमकार ही भूल गए, सद्ज्ञान हूँ में सामान नहीं,
जिनने फूलों में रखा मुझको, उनको भी मेरा भान नहीं |
मैं कठपुतली सी बन बैठी, अपने ही कैद विचारों में,
मेरे अपने ही जनक थे जो अब बेच रहे बाजारों में |
थी संस्कारों की वह होली, रस की फुहार, रंगों का प्यार,
अब फूहड़ता ने बदल दिया, उस सुखद पर्व का वह खुमार |
मेरी दीवाली दीपसजित हर और था खुशियों का प्रकाश,
अब मन अंधियारा दिखता है, आतिश से भले जलता आकाश |
थी मैं ममता, करुणा, समता, संबंधों की मैं स्नेहलता,
अब झंझाओं के घोर प्रलय में, शेष रह गयी चंचलता |
थे नैतिक मूल्यों की खातिर जो मिटने को तैयार खड़े,
मानवता की रक्षा के हित जो शिक्षक हर दीवार चढ़े |
अब वे ही मेरे परम पूज्य, मुझको शर्मिंदा करते हैं,
संस्कृति की भाषा झुठलाकर, मेरा घर गंदा करते हैं ||
क्या हट पायेगी मुझ पर से, जो पाश्चात्य की परत चढी |
मैं जुदा हो गयी विध्या से, अब मन अन्दर तक रोया है,
पहचान गयी तो गम न था, अब स्वाभिमान भी खोया है |
अब रामानंद का राम बचा वह तुलसी का श्रीराम कहाँ,
क्या होगा पूजा स्थल का अब रजनी है घनश्याम कहाँ |
वह पतिव्रता पांचाली अब तो चीर हरण में दिखती है,
माता सीता के चित्रों संग बस अगरबत्तियां बिकती है |
मैं गंगाजल सी थी पवित्र, था श्वेत धवल मेरा चरित्र,
अब जो प्रतिवेश मिला मुझको, अपनों में मैं लगती विचित्र |
मेरे मंदिर के गलियारे अब सुस्त दिखाई पड़ते है,
बच्चे मस्ती करते थे जहाँ, शिक्षक आपस में लड़ते हैं |
मेरी गरिमा का ह्वास हुआ, मेरे अपने ही आँगन में,
अब संस्कृति की झलक कहाँ, प्यारे बच्चों के क्रंदन में |
गांधी पूछो तो राहुल है, और अजय बना है भगत सिंह,
गुरु तेगबहादुर भूल गए, सरदार याद हरभजन सिंह |
जब कलमकार ही भूल गए, सद्ज्ञान हूँ में सामान नहीं,
जिनने फूलों में रखा मुझको, उनको भी मेरा भान नहीं |
मैं कठपुतली सी बन बैठी, अपने ही कैद विचारों में,
मेरे अपने ही जनक थे जो अब बेच रहे बाजारों में |
थी संस्कारों की वह होली, रस की फुहार, रंगों का प्यार,
अब फूहड़ता ने बदल दिया, उस सुखद पर्व का वह खुमार |
मेरी दीवाली दीपसजित हर और था खुशियों का प्रकाश,
अब मन अंधियारा दिखता है, आतिश से भले जलता आकाश |
थी मैं ममता, करुणा, समता, संबंधों की मैं स्नेहलता,
अब झंझाओं के घोर प्रलय में, शेष रह गयी चंचलता |
थे नैतिक मूल्यों की खातिर जो मिटने को तैयार खड़े,
मानवता की रक्षा के हित जो शिक्षक हर दीवार चढ़े |
अब वे ही मेरे परम पूज्य, मुझको शर्मिंदा करते हैं,
संस्कृति की भाषा झुठलाकर, मेरा घर गंदा करते हैं ||
aaj apke dwara likhi hui sabhi kavitae padhi. INSPIRING . THANK YOU. _/\_
ReplyDelete