अपने किये गये कर्मों का फल अच्छा या बुरा जैसा भी मिले उसकी स्वीकार्यता होती है, अथवा यों कहें कि उसके लिये हम तैयार रहते हैं। किंतु जब कभी ऐसे अपराध के लिए सजा मिलती है जिससे कभी कोई लेना देना नहीं रहा तब कष्ट और कठिनाइयां दो प्रकार की मनःस्थिति निर्मित करती हैं -
बदलाव अथवा बदला
कठिन परिस्थितियों को बदलाव के संकेत के रूप में स्वीकार
करने वाले व्यक्ति के लिये छोटे-बड़े कष्ट ईश्वरीय उपकार की भाँति होते हैं।
वहीं दूसरी ओर कष्टदायक परिस्थितियों के साथ जिसके मन
में द्वेष अथवा खिन्नता उत्पन्न होती है, उसमें बदले की भावना जन्म लेती है। न चाहते हुए भी ईश्वरीय इच्छा स्वीकार
तो इन्हें भी करनी ही पड़ती है।
सनातन संस्कृति में अध्यात्म की छोटी-छोटी क्रियाओं का
अभ्यास इसीलिये किया अथवा कराया जाता है ताकि परिस्थितियों की विषमता से मन को
विचलित होने से रोका जा सके। वैचारिक रूप से जिसने स्वयं को समृद्ध बनाया है उसके
लिये कठिन परिस्थितियां उस शाम के ढलते हुए सूर्य की भाँति है जो नयी सुबह के जन्म
का कारण है। वह सुबह निश्चित ही मानवीय उत्कृष्टता का पथ है।
इस अंधेरी राह में भी जल रहा है इक दिया, शेष हैं बस कुछ प्रहर तू तनिक धीरज दिखा।
- विवेक