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Saturday, May 13, 2023
रिजल्ट की हाय तौबा
Monday, April 17, 2023
किशोर अभिभावक संवाद - 2
आज सुबह उठते ही प्रखर के माता-पिता ने निश्चय किया कि अब वे उससे केवल प्यार से बात करेंगे। उसकी आवश्यकता की पूर्ति करते हुए, कुछ समय के लिए ही सही, उसे अपने तरीके से अपने निर्णय लेने देंगे।
वैसे इसमें कुछ भी नया नहीं था। निर्णय लेने की स्वतंत्रता तो उसने पहले से ही अपने पास रखी हुई थी। हां, प्यार से बात करने का निश्चय शायद तनाव को कुछ कम कर सके। समझदार अथवा पढ़े-लिखे एवं नासमझ अथवा कम पढ़े लिखे लोगों में एक बड़ा अंतर होता है – तर्कशक्ति का। पढ़े-लिखे लोग अपनी विद्वता का प्रदर्शन तर्कशक्ति के माध्यम से कर लेते हैं। वर्तमान दौर में इसे धैर्य की कमी कहें अथवा अपने अहम की गरमाहट, हर कोई अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए तर्क देता है, और यह तर्क कब अपने अहम से चिपक जाते हैं इसका अंदाजा भी नहीं होता। प्रखर के माता पिता आज शाम को जब घर आए तो देखा प्रखर बाहर गया है। फोन किया तो उत्तर मिला – दोस्तों के साथ हूं, अभी कुछ देर में आता हूं। ’कितनी देर’ जैसे शब्दों का प्रयोग करने की तो किसी को स्वतंत्रता ही नहीं थी। रात के लगभग 10:00 बजे बेल बजी। पिता अपने काम में व्यस्त थे, मां ने दरवाजा खोला। प्रखर भीतर आयाऔर अपने कमरे में चला गया। मां ने खाने के लिए पूछा किंतु वह अपने दोस्तों के साथ बाहर खा चुका था। प्रखर ने खुद ही बताया कि उसके किसी दोस्त की बर्थडे पार्टी थी। ’कैसी रही पार्टी’ पूछने पर उत्तर ’बढ़िया’ मिला। प्रखर कुछ बात करना चाह रहा था, अपने माता-पिता से किंतु समय इतना हो गया था कि उन दोनों में से किसी की भी सुनने की सामर्थ्य नहीं थी। सुबह प्रखर के उठने से पहले ही दोनों ऑफिस जा चुके थे। क्या बात करना चाह रहा था प्रखर? शायद बर्थडे पार्टी में कुछ हुआ हो? या अपने दोस्तों की कोई बात हो? या खुद से ही सम्बन्धित कोई बात हो?
उसकी बात चिंता की थी, खुशी की थी, जिज्ञासा की थी, उत्साह की थी ये तो वही जाने किंतु अच्छी बात यह है कि वह अपने मन की बात को साझा करना चाह रहा था। खराब बात यह है कि जिस समय वह अपनी बात कहना चाह रहा था उसके माता-पिता की उपलब्धता नहीं थी। वैसे कोई आवश्यक भी नहीं कि जब बच्चे चाहें उनके अभिभावक उनके लिए उपस्थित रहें। अभिभावकों को यह भी समझना पड़ेगा कि बच्चों की ’बात’ बाद में भले ही बची रहे, किंतु वह ’उत्साह’ अथवा वह ’चिंता’ बाद में नहीं रह पाएंगे जो उस समय थे। समझने की बात यह भी है कि बच्चों की ’बात’ से अधिक मूल्यवान उनकी ’चिंता’ अथवा ’उत्साह’ होता है।
इसलिए शायद अभिभावकों (माता या पिता) की उपलब्धता बच्चों की चाहत पर हमेशा नहीं तो कभी-कभी तो निर्भर करनी ही चाहिए। शाम को जब प्रखर के माता-पिता घर आए तो फिर से प्रखर घर पर नहीं था। कुछ देर पश्चात जब घर आया तो मां ने पूछ लिया – तुम कल कुछ कहना चाह रहे थे? प्रखर ने बस इतना ही कहा – नहीं कुछ खास नहीं। अधिक जोर देने पर भी जब प्रखर उखड़ा हुआ ही दिखा तो बात माता-पिता को अच्छी नहीं लगी और फिर शुरू हुआ वाक युद्ध। तर्क पर तर्क और उस पर महातर्क....
आगे की बात आगे....