Friday, January 7, 2011

नया वर्ष

नये सूर्य की नयी रश्मि सा स्वर्ण धरा पर छाया है
नूतनता की नयी सृष्टि ले नया वर्ष फिर आया है
नये वर्ष की नयी सुबह में नयी सोच और नया तेज है
नयी दृष्टि ने देखा जग को ज्यों दुल्हन की सजी सेज है
नयी प्रखरता नयी दिव्यता ऐसा लगता ज्ञान नया है
नये दिए की नयी वर्तिका, घर का हर सामान नया है
नये वर्ष के नये विश्व में तकनीकों का दौर नया है
नयी बूँद से बनने वाले सागर का इक छोर नया है
नया सफ़र और नयी डगर है पनघट की गागर भी नयी है
नये खिलोने, नयी गाड़ियाँ, बिस्तर की चादर भी नयी है
नयी कलम से बने शब्द से सजने वाले पृष्ठ नये है
पर अतीत के स्वर्ण पलों को बिसरा दे जो कष्ट नये है
नये वर्ष में नयी दूरियां, लोभ मोह का नया अँधेरा
नया धर्म और नव नैतिकता, नव झंझावातों का डेरा
मैंने देखी इक दूकान पर बदले हुए समय की छाया
सुख का जो अहसास था कभी, नयी सुबह ने है बिसराया
जहाँ अतीत के स्वर्ण पलों में पक्षी कलरव करते थे
इंतज़ार करते कुंडो का चुन चुन दाना चुगते थे
उस हरे पेड़ की हर इक शाख का क्या मदमस्त नज़ारा था
चिड़िया, तोते खेला करते खेल बड़ा ही प्यारा था
कहाँ खो गए प्यारे पन्छी नये विश्व के नये सृजन में
किसने घोला ज़हर हवा में, कलरव के उस उच्चारण में
बदला हो परिवेश पर नवपन का अहसास ना भाया
पानी भरे हुए कुंडो को इंतज़ार जब करते पाया